1. दाता प्रतिगृहीता च शुद्धि र्देयं च धर्मयुक् ।
देशकालौ च दानानाम ङ्गन्येतानि षड् विदुः ॥
अर्थात् :- दाता, लेनेवाला, पावित्र्य, देय वस्तु, देश, और काल – ये छे दान के अंग हैं ।
2. आनन्दाश्रूणि रोमाञ्चो बहुमानः प्रियं वचः ।
तथानुमोदता पात्रे दानभूषणपञ्चकम् ॥
तथानुमोदता पात्रे दानभूषणपञ्चकम् ॥
अर्थात् :- आनंदाश्रु, रोमांच, लेनेवाले के प्रति अति आदर, प्रिय वचन, सुपात्र को दान देने का अनुमोदन – ये पाँच दान के भूषण हैं ।
3. अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यं निष्ठुरं वचः ।
पश्चात्तापश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च ॥
पश्चात्तापश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च ॥
अर्थात् :- तिरष्कार, देने में विलंब, मुँह फेरना, निष्ठुर वचन, और देने के बाद पश्चाताप – ये पाँच दान के दूषण हैं ।
4. यद् दत्त्वा तप्यते पश्चादपात्रेभ्यस्तथा च यत् ।
अश्रद्धया च यद्दानं दाननाशास्त्रयः स्वमी ॥
अश्रद्धया च यद्दानं दाननाशास्त्रयः स्वमी ॥
अर्थात् :- देने के बाद पश्चात्ताप होना, अपात्र को देना, और श्रद्धारहित देना – इनसे दान नष्ट हो जाता है ।
5. लब्धानामपि वित्तानां बोद्धव्यौ द्वावतिक्रमौ ।
अपात्रे प्रतिपत्तिश्च पात्रे चाप्रतिपादनम् ॥
अपात्रे प्रतिपत्तिश्च पात्रे चाप्रतिपादनम् ॥
अर्थात् :- वित्तवानों के हाथ से धन का दो तरीकों से दुरुपयोग होता है; कुपात्र को दान देकर, और सत्पात्र को न देकर ।
6. द्वाविमौ पुरुषौ लोके न भूतौ न भविष्यतः ।
प्रार्थितं यश्च कुरुते यश्च नार्थयते परम् ॥
प्रार्थितं यश्च कुरुते यश्च नार्थयते परम् ॥
अर्थात् :- दो प्रकार के लोग होना मुश्किल है; जो दूसरों की प्रार्थना पूरी करता है, और जो दूसरे के पास मागता नहि ।
7. अनुकूले विधौ देयं एतः पूरयिता हरिः ।
प्रतिकूले बिधौ देयं यतः सर्वं हरिष्यति ॥
प्रतिकूले बिधौ देयं यतः सर्वं हरिष्यति ॥
अर्थात् :- तकदीर अनुकुल हो तब दान देना चाहिए क्यों कि सब देनेवाला भगवान है । तकदीर प्रतिकुल हो तब भी देना चाहिए क्यों कि सब हरण करनेवाला भी भगवान ही है ।
8. बोधयन्ति न याचन्ते भिक्षाद्वारा गृहे गृहे ।
दीयतां दीयतां नित्यमदातुः फलमीदृशम् ॥
दीयतां दीयतां नित्यमदातुः फलमीदृशम् ॥
अर्थात् :- घर घर जानेवाले याचक, भिक्षा नहीं मांग रहे बल्कि यह उपदेश दे रहे हैं कि नित्य दान देते रहो, (अन्यथा) अदातृत्व का परिणाम हम को देख लो !
9. दानेन भूतानि वशी भवन्ति
दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् ।
परोऽपि बन्धुत्वभुपैति दानैर्
दानं हि सर्वेव्यसनानि हन्ति ॥
दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् ।
परोऽपि बन्धुत्वभुपैति दानैर्
दानं हि सर्वेव्यसनानि हन्ति ॥
अर्थात् :- दान से सभी प्राणी वश होते है; दान से बैर खत्म हो जाता है । दान से शत्रु भी भाई बन जाता है; दान से ही सभी संकट दूर होते हैं ।
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Narayan Patel;
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